कब तक तेरी हर बात को नियति मानकर
स्वीकारता रहूं में,
कब तक तेरे हर निर्णय को प्रारब्ध का फल
समझ टालता रहूं में
में ना समझू नियति को
ना जानू मर्म प्रारब्ध का
में तो जानता हूँ बस एक बात
जब कर्म पे हैं मेरा हक
तो फल पे क्यों नहीं मेरा अधिकार
मुझे दो बस इसी बात का उत्तर
कर्म और फल में कहाँ से आए
ये नियति प्रारब्ध आदि सब
आज में चाहता हूँ इन प्रश्नो का उत्तर
यदि इसे विद्रोह समझो तुम या तुम्हारा समाज
ये विद्रोह करूँगा में बार बार
हां हां विद्रोह करूँगा में बार बार |
1 comment:
Thank u for this.
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